बढ़ाना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]बढ़ाना ^१ क्रि॰ स॰ [हिं॰ बढ़ना का सकर्मक अथवा प्रेर॰]
१. विस्तार या परिमाण में अधिक करना । विस्तृत करना । डीलडौल, आकार या लंवाई चौड़ाई में ज्यादा करना । वर्धित करना । जैसे, दीवार बढ़ाना, मकान बढ़ाना । संयो॰ क्रि॰—देना ।—लेना । मुहा॰—बात बढ़ाना = झगड़ा करना । बात बढ़ाकर कहना = अर्त्युक्ति करना ।
२. परिमाण, संख्या या मात्रा में अधिक करना । गिनती, नाप तौल आदि में ज्यादा करना । जैसे आदमी बढ़ाना, खर्च बढ़ाना, खुराक बढ़ाना । संयो॰ क्रि॰—देना ।—लेना ।
३. फैलाना । लंबा करना । जैसे, तार बढ़ाना ।
४. बल, प्रभाव गुण आदि में अधिक करना । असर या खासियत वगैरह में ज्यादा करना । अधिक व्यापक, प्रबल या तीव्र करना । जैसे दुःख बढ़ाना, क्लेश बढ़ाना, यश बढ़ाना, लालच बढ़ाना । संयो॰ क्रि॰—देना ।—लेना ।
५. पद, मर्यादा, अधिकार, विद्या, वुद्धि, सुखसंपत्ति आदि में अधिक करना । दौलत या रुतवे वगैरह का ज्यादा करना । उन्नत करना । तरक्की देना । जैसे,—राजा साहब ने उन्हें खूब बढ़ाया ।
६. किसी स्थान से आगे ले जाना । आगे गमन कराना । अग्रसर करना । चलाना । जैसे, घोड़ा बढ़ाना, भीड़ बढ़ाना । मुहा॰—पतंग बढ़ाना = पतंग और ऊँचे उडा़ना ।
७. चलने में किसी से आगे निकाल देना ।
८. किसी बात में किसी से अधिक कर देना । ऊँचा या उन्नत कर देना ।
९. भाव अधिक कर देना । सस्ता बेचना । जैसे,—बनिए गेहूँ नहीं बढ़ा रहे हैं ।
१०. विस्तार करना । फैलाना । जैसे, कारबार बढाना ।
११. दूकान आदि समेटना । नित्य का व्यवहार समाप्त करना । कार्यालय बंद करना । जैसे, दूकान बढ़ाना, काम बढ़ाना ।
१२. दीपक निर्वाप्त करना । चिराग बुझाना । उ॰—अंग अंग नग जगमगत, दीपसिखा सी देह । दिया बढ़ाए हू रहै बड़ो उजेरो गेह ।—बिहारी (शब्द॰) ।
बढ़ाना ^२ क्रि॰ अ॰ चुकना । समाप्त होना । बाकी न रह जाना । खतम होना । उ॰—(क) मेघ सबै जल बरखि बढा़ने विवि गुन गए सिराई । वैसोई गिरिवर ब्रजवासी दूनो हरख बढ़ाई । सूर (शब्द॰) । (ख) राम मातु उर लियो लगाई । सो सुख कैसे बरनि बढ़ाई ।—रघुराज (शब्द॰) । (ग) गिनति न मेरे अघन की गिनती नहीं बढाइ । असरन सरन कहाइ प्रभु मत मोहि सरन छुड़ाइ ।—स॰ सप्तक, पृ॰ २२६ ।