बदरिकाश्रम

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

बदरिकाश्रम संज्ञा पुं॰ [सं॰] तीर्थविशेष जो हिमालय पर है । यहां नर नारायण तथा व्यास का आश्रम है । विशेष—यह तीर्थ श्रीनगरव (गढ़वाल) के पास अलकनंदा नदी के पश्चिमी कीनारे पर है । कहते हैं । भृगुतुंग नामक श्रृंग के ऊपर एक बदरी वृक्ष के कारण बदरिकाश्रम नाम पड़ा । महाभारत में लिखा हैं, पहले यहा गगा की गरम और ठंढो दी घाराएँ थीं, ओर रेत सोने की थी । यहां पर देवताओं ने तप करके विष्णु को प्राप्त किया था । गधमादन, बदरी, नरनारायण ओर कुबेरश्रृग इसी तीर्थ के अंतर्गत हैं । नर- नारायण अर्जुन ने यहा बड़ा तप किया था । पांडव महाप्रस्थान के लिये इसी स्थान पर गए थे । पद्यपुराण में बैष्णवों के सब तीर्थों में बदरीकाश्रम श्रेष्ठ कहा गया है ।