बरम
हिन्दी[सम्पादन]
प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]
शब्दसागर[सम्पादन]
बरम पु ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ वर्म] जिरह बक्तर । कवच । शरीरत्राण । उ॰—(क) असन बिनु बिनु बरम बिनु रण बच्यो कठिन कुघायँ ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) पहिर बरम, असि, चरम खरे सो सुभट बिराजै ।—नंद॰ ग्रं॰, पृ॰ २०९ ।
बरम † संज्ञा पुं॰ [सं॰ ब्रह्म] दे॰ 'ब्रह्म' । यौ॰—बरमसूत = जनेऊ । ब्रह्मसूत्र । यज्ञोपवीत । उ॰—कंधे पर वरमसूत पहने रग्घू मजदूरी करने कैसे जाती ।—भस्मावृत॰, पृ॰ ८५ ।