बलाय

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

बलाय ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰] बरुना नामक वृक्ष । बन्ना । बलास ।

बलाय ^२ संज्ञा पुं॰ [अ॰ बला]

१. आपत्ति । विपत्ति । बला । उ॰—लालन तेरे मुख रहौं वारी । बाल गोपाल लगो इन नैननि रोगु बलाय तुम्हारी ।—सूर (शब्द॰) ।

२. दुख । कष्ट । उ॰—हरि को मति पूछति इमि गायो बिरह बलाय । परत कान तजि मान तिय मिली कान्ह सों जाय ।—पद्माकर (शब्द॰) ।

३. भूत प्रेत की बाधा ।

४. दुःखदायक रोग जो पीछा न छोड़े । व्याधि । उ॰—अलि इन लोचन को कहूँ उपजी बड़ी बलाय । नीर भरे नित प्रति रहैं तऊ न प्यास बुझाय ।—बिहारी (शब्द॰) ।

५. पीछा न छोड़नेवाला शत्रु । अत्यंत दुःखदायी मनुष्य । बहुत तंग करनेवाला आदगी । उ॰—बापुरी विभीषन पुकारि बार बार कह्यौ बानर बड़ी वलाय बने घर घालि है ।—तुलसी (शब्द॰) । मुहा॰—बलाय ऐसा करे या करती है=ऐसा नहीं करता है या करेगा । दे॰ 'बला' । उ॰—(क) तौ अनेक अवगुन भरी चाहै याहि बलाय । जौ पति संपति हू बिना जदुपति राखे जाय ।—बिहारी (शब्द॰) । (ख) जा मृमनैनी की सदा बेनी परसत पाय । ताहि देखि मन तीरथनि विकटनि जाय बलाय ।—बिहारी (शब्द॰) । (ग) उठि चलौ जो न मानै काहू की बलाय जानै मान सों जो पहिचानै ताके आइयतु है ।—केशव (शब्द॰) । वलाय लेना =(अर्थात् किसी का रोग दुख अपने ऊपर लेना) मंगल कामना करते हुए प्यार करना । विशेष—स्त्रियाँ प्रायः बच्चों के ऊपर से हाथ घुमाकर और फिर ऊपर ले जाकर इस भाव को प्रकट करती हैं । उ॰— (क) निकट बुलाय बिठाय निरखि मुख आँचर लेति बलाय ।—सूर (शब्द॰) । (ख) लै बलाय सुकर लगायो निरखि मंगलचार गायो ।—सूर (शब्द॰) ।

६. एक रोग जिसमें रोगी की उँगली के छोर या गाँठ पर फोड़ा हो जाता है । इसमें रोगी को बहुत कष्ट होता है और उँगली कट जाती या टेढ़ी हो जाती है ।