बलिहारी

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

बलिहारी संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ बलि + हारी] निछावर । कुरबान । प्रेम, भक्ति, श्रद्धा आदि के कारण अपने को उत्सर्ग कर देना । उ॰—(क) सुख के माथे सिल परै हरि हिरदा सी जाय । बलिहारी वा दुःख की पल पल राम कहाय ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) बलिहारी अब क्यों कियो सैन साँवरे संग । नहिं कहुँ गोरे अंग ये भए झाँवरे रंग ।—श्रृंगार सत॰ (शब्द॰) । (ग) तुका बड़ो मैं ना मनूँ जिस पास बहुत दाम । बलिहारी उस मुख की जिस्ते निकसे राम ।—दक्खिनी॰, पृ॰ १०७ । मुहा॰—बलिहारी जाना=निछावर होना । कुरबान जाना । बलैया लेना । उ॰—दादू उस गुरुदेव की मैं बलिहारी जाउँ । आसन अमर अलेख था लै राखे उस ठाउँ ।—दादू (शब्द॰) । बलिहारी लेना=बलैया लेना । प्रेम दिखाना । उ॰—पहुँची जाय महरि मंदिर में करत कुलाहल भारी । दरसन करि जसुमति सुत को सब लेन लगीं बलिहारी ।—सूर (शब्द॰) । बलिहारी है ! =मैं इतना मोहित या प्रसन्न हूँ कि अपने को निछावर करता हूँ । क्या कहना है । विशेष—सुंदर रूप रंग, शोभा, शील स्वभाव, आदि को देख प्रायः यह वाक्य बोलते हैं । किसी की बुराई, बेढगेपन या विलक्षणता को दिखकर व्यग्य के रूप में भी इसका प्रयोग बहुत होता है ।