बसंदर संज्ञा पुं॰ [सं॰ वैश्वानर] आग । उ॰—कथा कहानी सुनि जिउ जरा । जानहुँ घीउ बसंदर परा ।—जायसी ग्रं॰, पृ॰ ९७ ।