बसना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

बसना ^१ क्रि॰ अ॰ [सं॰ वसन]

१. स्थायी रूप से स्थित होना । निवास करना । रहना । जैसे,—इस गाँव में कितने मनुष्य बसते हैं । उ॰—(क) जो खोदाय मसजिद में बसत है और देस केहि केरा ?—कबीर (शब्द॰) । (ख) ब्रजबनिता के नयनं प्रान बिच तुमही श्याम बसंत ।—सूर (शव्द॰) ।

२. जनपूर्ण होना । प्राणियों या निवासियों से भरा पूरा होना । आवाद होना । जैसे, गाँव बसना, शहर बसना । संयो॰ क्रि॰—जाना । मुहा॰—घर बसाना=कुटुंबसहित सुखपूर्वक स्थित होना । गृहस्थी का बनना । उ॰—नारद बचन न मैं परिहरहूँ । बसउ भवन, उजरउ नहि डरहूँ ।—तुलसी (शब्द॰) । घर में बसना =सुखपूर्वक गृहस्थी में रहना । उ॰—सुखत बचन बिहँसे रिषिय गिरिसंभव तव देह । नारद कर उपदेस सुनि कहहू बसेउ को गेह ।—तुलसी (शब्द॰) ।

३. टिकना । ठहरना । अवस्थाना करना । डेरा करना । जैसे,— ये तो साधु हैं रात को कहीं बस रहे । संयो॰ क्रि॰—जाना ।—रहना । मुहा॰—मन में बसना=घ्यान में बना रहना । स्मृति में रहना । उ॰—सीस मुकुट कटि काछनी कर मुरली उर माल । इहि बानिक मो मन बसौ सदा बिहारीलाल ।—बिहारी (शब्द॰) ।

४. पु बैठना । बैसना ।

बसना ^२ क्रि॰ अ॰ [हिं॰ बासना] बासा जाना । सुगंध से पूर्ण हो जाना । सुगंधित हो जाना । महक से भर जाना । जैसे,— तेल बस गया । संयो॰ क्रि॰—जाना ।

बसना ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ वसन (=कपड़ा)]

१. वह कपड़ा जिसमें कोई वस्तु लपेटकर रखी जाय । वेष्ठन । बेठन ।

२. थैली ।

३. वह लंबी जालीदार थैली जिसमें रुपया पैसै रखते हैं । इसे बसनी भी कहते हैं ।

४. वह कोठी जिसमें रुपए का लेनदेन होता हो ।

५. बासन । बरतन । भाँड़ा ।

बसना ^४ संज्ञा पुं॰ [देश॰] जयंती की जाति का एक प्रकार का मझोला वृक्ष । विशेष—यह वृक्ष देखने में बहुत सुंदर होता है और प्रायः शोभा के लिये बागों में लगाया जाता है । इसके पत्ते एक बालिश्त लंबे होते हैं । प्रायः पान के भीटों में यह लगाया जाता है । इसकी पत्तियों, कलियों और फूलों की तरकारी बनती है और ओषधि रूप में भी उनका उपयोग होता है ।