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बहकना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

बहकना क्रि॰ अ॰ [हिं॰ बहा ? या हिं॰ बहना से बहकना (=इधर उधर बह जागा)]

१. भूल से ठीक रास्ते से दूसरी ओर जा पड़ना । मागंभ्रष्ट होना । भटकना । जैसे,— वह बहककर जंगल की ओर चला यया । संयो॰ क्रि॰—जाना ।

२. ठीक लक्ष्य या स्थान पर न जाकर दूसरी ओर जा पड़ना । चूकना । जैसे, तलवार बहकना, हाथ बहकना ।

३. किसा की बात या भुलावे में आ जाना । बिना भला बुरा बिचारे किसी के कहने या फुसलाने से कोई काम कर बैठना । उ॰— बहक न हहि बहनापने जब तब, वीर बिनास । बचै न बड़ी सबीलहू चील घोंसुवा माँस ।—बिहारी (शब्द॰) ।

४. किसी बात में लग जाने के कारण शांत होना । बहलना (बच्चों के लिये) ।

५. आपे में न रहना । रस या मद में चूर होना । जोश या आवेश में होना । उ॰—जब ने ऋतुराज समाज रच्यो तब तें अवली अलि की चहकी । सरसाय के सोर रसाल की डारन कोकिल कूकैं फिरै बहकी ।—रसिया (शव्द॰) । मुहा॰—बहककर बोलना=(१) मद में चूर होकर बोलना । (२) जोश में आकर बढ़ बढ़कर बोलना । अभिमान आन ि से भरकर परिणाम या औचित्य आदि का पिचार न करना । जैसे,—आज बहुत बहककर बोल रहे हो, उस दिन कुछ करते धरते नहीं बना । बहकी बहकी बातें करना=(१) मदोन्मत्त की सी बातें करना । (२) बहुत बढ़ी चढ़ी बातें करना ।