बा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]बा ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ वार् > वाः ( = जल)] जल । पानी । उ॰— राधे तै कत मान कियो री । धन हर हित रिपु सुत सुजान को नीतन नाहिं दियो री । बा जा पति अग्रज अंबा के भानुथा न सुत हीन हियो री ।—सूर (शब्द॰) । (ख) राधा कैसे मान बचावै । सेसभार धर जा पति रिपु तिय जलयुत कबहुँ न हेरै । बा निवास रिपु धर रिपु लै सर सदा सूल सुख पैरै । बा ज्वर नीतन ते सारँग अति बार बार भर लावै ।—सूर (शब्द॰) ।
बा ^२ संज्ञा पुं॰ [फा़॰ बार] बार । दफा । मरतबा । उ॰—कारे बरन डरावने कत आवत यहि गेह । कै बा लख्यौ, सखी ! लखे लगै थरथरी देह ।—बिहारी (शब्द॰) ।
बा ^३ उप॰ [फा़॰] साथ । वाला । पूर्ण । विशेष—संज्ञावाचक शब्दों के पूर्व लगने पर यह उपरिलिखित अर्थ देता है । जैसे,—बाअदब, बाअसर, बाआबरू, बाईमान, आदि ।
बा ^४ संज्ञा स्त्री॰ [देश बाइया, गुज॰ बाई, बा]
१. माता । मा ।
२. श्रेष्ठ या बड़ी स्त्रियों के लिये आदराथंक शब्द ।
३. महात्मा गांधी की धर्मपत्नी । कस्तूरबा गांधी ।