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बाँचना

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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बाँचना † ^१ क्रि॰ स॰ [सं॰ वाचन] पढ़ना । उ॰—(क) जाइ विधिह तिन दीन्ह सो पाती । बाँचत प्रीति म हृदय समाती ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) तर झुरसी ऊपर गरी कज्जल जल छिरकाय । पिय पाती बिन ही लिखी बाँची बिरह बलाय ।—बिहारी (शब्द॰) ।

बाँचना ^२ क्रि॰ अ॰ [सं॰ वञ्चन]

१. शेष रहना । बाकी रहना । बच रहना । उ॰—सत्यकेतु कुल कोउ न बाँचा । विप्र साप किमि होय असाँधा ।—तुलसी (शब्द॰) ।

२. जीवित रहना । बचा रहना । उ॰—तेहि कारण खल अब लगि बाँचा । अब तव काल सीस पर नावा ।—तुलसी (शब्द॰) ।

बाँचना ^३ क्रि॰ स॰ [हिं॰ बचाना] बचाना । छोड़ देना । उ॰— बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा । अब यह मरनिहार भा साँचा ।—तुलसी (शब्द॰) ।