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बाँट

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

बाँट ^१ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ बाँटना का भाव]

१. किसी वस्तु को बाँटने की क्रिया या भाव ।

२. भाग । हिस्सा । बखरा । मुहा॰—बाँट पड़ना = हिस्से में आना । किसी में, या किसी के पास बहुत परिमाण में होना । उ॰—विप्रद्रोह जु बाँट परयो हठि सबसे बैर बढ़ावौं ।—तुलसी (शब्द॰) । बाँठ में पड़ना = दे॰ 'बाँठ पड़ना' । उ॰—दिलेरी हमारे बाँठ में पड़ी थी ।—चुभते॰, पृ॰ २ । बाँटे पड़ना = हिस्से में आना । उ॰—काँटे भी हैं कुसुम संग बाँटे पड़े ।—साकेत, पृ॰ १३८ ।

३. घास या पयाल का बना हुआ एक मोडा सा रस्सा जिसे गाँव के लोग कुवार सुदी १४ को बनाते हैं और दोनों ओर से कुछ लोग इसे पकड़कर तव तक खींचातानी करते हैं जब तक वह टूट नहीं जाता । यौ॰—बाटा चौदस = कुँवार सुदी १४ जिस दिन बाँट खींचा जाता है ।

बाँट पु ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ वटक] दे॰ 'बाट ^२' ।

बाँट ^३ संज्ञा पुं॰ [देश॰]

१. गौओं आदि के लिये एक विशेष प्रकार का भोजन जिसमें खरी बिनौला आदि चीजें रहती हैं । इससे उनका दूध बढ़ जाता है ।

२. ढेढ़र नाम की घास जो धान के खेतों में उगकर उसकी फसल को हानि पहुँचाती है ।

बाँट बखरा संज्ञा पुं॰ [हिं॰ बाट + बखरा] बाँट । अलग अलग हिस्सा मिलना ।