बाजी
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]बाजी ^१ संज्ञा स्त्री॰ [फ़ा॰ बाजी]
१. दो व्यक्तियों या दलों में ऐसी प्रतिज्ञा जिसके अनुसार यह निश्चित हो की अमुक बात होने या न होने पर हम तुमको इतना धन देगे अथवा तुमसे इतना धन लेंगे । ऐसी शर्त जिसमें हार जीत के अनुसार कुछ लेन देन भी हो । शर्त । दाँव । बदान । क्रि॰ प्र॰—बदना ।—लगना ।—लगाना । मुहा॰—बाजी पर बाजी जीतना = लगातर विजयी होना । उ॰—वह बड़े शहसवार हैं । कई घुड़दौड़ों में बाजियों पर बाजियाँ जित चुके हैं ।—फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ २२ । बाजी बीस होना = (१) अन्य खेलनेवालों से अधिक जीतना । (२) व्यापार में गहरा मुनाफा कमाना । बाजी मारना = बाजी जीतना । दाँव जीतना । बाजी ले जाना = किसी बात में आगे बढ़ जाना । श्रेष्ठ ठहरना ।
२. आदि से अंत तक कोई ऐसा पूरा खेल जिसमें शर्त या दाँव लगा हो । जैसे, —दो बाजी ताश हो जाय, तो चलें ।
३. खेल में प्रत्येक खिलाड़ी के खेलने का समय जो एक दूसरे के बाद क्रम से आता है । दाँव । मुहा॰—बाजी आना = गंजीफे या ताश आदि के खेल में अच्छे पत्ते मिलना ।
३. कौतुक । तमाशा ।
४. धोखा । छल । असत्य । माया । उ॰—अविगति अगम अपार और सब दीसै वार्जी । पढ़ि पढ़ि बेद कितेब भुले पंडित औ काजी ।—धरम श॰, पृ॰ ८९ ।
५. मसखरापन (को॰) ।
बाजी ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ वाजिन्] घोड़ा ।
बाजी ^३ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ बाजा] वह जिसका काम बाजा बजाना हो । बजनिया ।