बाण
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]बाण संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. एक लंबा और नुकीला अस्त्र जो धनुष पर चढ़ाकर चलाया जाता है । तीर । सायक । शर । विशेष—प्राचीन काल में प्रायः सारे संसार में इस अस्त्र का प्रयोग होता था; ओर अब भी अनेक स्थानों के जंगली ओर अशिक्षित लोग अपने शत्रुओं का संहार या आखेट आदि करने में इसी का व्यबहार करते हैं । यह प्रायः लकड़ी या नरसल की डेढ़ हाथ की छड़ होती है । जिसके सिरे पर पैना लोहा, हड्डी, चकमक आदि लगा रहता है जिसे फल या गाँसी कहते हैं । यह फल कई प्रकार का होता है । कोई लंबा, कोई अर्धचंद्राकार और कोई गोल । लोहे का फल कभी कभी जहर में बुझा भी लिया जाता है । जिससे आहत की मृत्यु प्रायः निश्चित हो जाती है । कहीं इसके पिछले भाग में पर आदि भी बाँध देते हैं जिससे यह सीधा तेजी के साथ जाता है । हमारे यहाँ धनुर्वेद में वाणों और उसके फलों सा विशद रूप मे बर्णन है । वि॰ दे॰ 'धनुर्वेद' । पर्या॰—पृथक्क । विशिख । खग । आशुग । कलंब । मार्गण । पत्री । रोप । वीरतर । फांड । विपर्पक । शर । बाजी । पत्र- बाह । अस्त्रकंटक ।
२. गाय का धन ।
३. आग ।
४. भद्रमुंज नामक तृण । रामसर । सरपत ।
५. निशाना । लक्ष्य ।
६. पाँच की संख्या । (कामदेव के पाँच बाण माने गए हैं; इसी से बाण से ५ की संख्या का बोध होता है) ।
७. शर का अगला भाग ।
८. नीली कटसरैया ।
९. इक्ष्वाकुवंशीय विकुजक्षि के पुत्र का नाम ।
१०. राजा वलि के सौ पुञों में से सबसे बडे़ पुञ का नाम । विशेष—इनकी राजधानी पाताल की शोणितपुरी थी । इन्होंने शिव से वर प्राप्त किया था जिससे देवता लोग अनुचरों के समान इनके साथ रहते थे । कहते हैं, युद्ध के समय स्वयं महादेव इनकी सहायता करते थे । उषा, जो अनिरुद्ध को व्याही थी, इन्हिं की कन्या थी ।
११. संस्कृत के एक प्रसिद्ध कवि । वि॰ दे॰ 'बाणभट्ट' ।
१२. स्वर्ग ।
१३. निर्वाण । मोक्ष ।