बाधक

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

बाधक ^१ वि॰ [सं॰]

१. प्रतिबंधक । रुकावट डालनेवाला । रोकनेवाला । विघ्नकर्ता । उ॰— तो हम उनके बाधक क्यों हों ।—भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ १, पृ॰ २६८ ।

२. दुःखदायी । हानिकारक । हिंसक । मार ड़ालनेवाला । उ॰— बाधक बधिक बिलोकि पराहीं ।—मानस ।

बाधक ^२ संज्ञा पुं॰ स्त्रियों का एक रोग जिसमें उन्हें संतति नहीं होती या संतति होने में बड़ी पीड़ा या कठिनता होती है । विशेष— वैद्यक के अनुसार चार प्रकार के दोषों सें बाधक रोग होता है— रक्तमाद्री, यष्ठी, अंकुर और जलकुमार । रक्तमाद्री में कटि, नाभि, पेड़ू आदि में वेदना होती है और क्रेतु ठिक समय पर नहीं होता । यष्ठी बाधक में ऋतुकाल में आँखों, हथेलियों और योनि में जलन होती है, और रक्तस्राव लाल युक्त (झुग मिला) होता है तथा ऋतु, महीने में दो बार होता है । अंकुर बाधक में ऋतुकाल में उद्वेग रहता है, शरीर भारी रहता है । रक्तस्राव बहुत होता है । नाभि के नीचे शूल होता है तीन तीन चार चार महीने पर ऋतु होता है, हाथ पैर में जलन रहती है । जलकुमार में शरीर सूज जाता है, बहुत दिनों में ऋतु हुआ करता है, सो भी बहुत थोड़ा; गर्भ न रहने पर भी गर्भ या मालूम होता है । इन चारों बाधकों सले प्रायः गर्भ रहता ।