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बान

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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बान ^१ संज्ञा पुं॰ [देश॰]

१. शालि या जड़हन को रोपने के समय उतनी पेड़ियाँ जो एक साथ लेकर एक थान में रोपी जाती हैं । जड़हन के खेत में रोपी हुई धान की जूरी । क्रि॰ प्र॰—बैठाना ।—रोपना ।

२. एक बहुत ऊँचा और मजवूत लकड़ीवाली पहाड़ी वृक्ष । विशेष—यह वृक्ष अफगानिस्तान में तथा हिमालय में आसाम तक सात हजार से नौ हजार फुट की ऊँचाई तक होता है । इसके पेड़ बहुत उँचे होते हैं और यद्यपि इसका पतझड़ नहीं होता तो भी वसंत ऋतु में इसकी पतियाँ रंग बदलती हैं । इसकी लकड़ी ललाई लिए सफेद रंग की होती है और बहुत मजबूत होती है । इसका वजन प्रति घनफुट तीस सेर तक होता है और यह घर और खेती के सामान बनाने में काम आती है । इसकी छड़ियाँ भी बनती हैं । पत्तियाँ और छाल चमड़े सिझाने के काम आती है ।

बान ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ बाण]

१. बाण । तीर ।

२. एक प्रकार की आतशबाजी जो तीर के आकार की होती है । इसमें आग लगते ही यह आकाश की ओर बड़े वेग से छूट जाती है ।

३. समुद्र या नदी उँची लहर ।

४. वह गुंबदाकार छोटा डंडा जिससे धुनकी (कमान) की ताँत को झटका देकर रुई धुनते हैं ।

५. मूँज की बटी हुई रस्सी । बाध ।

६. बाना नाम का हथियार जो फेंककर मारा जाता है । उ॰— गोली बान सुमंत्र सर समुझि उलटि मन देखु । उत्तम मध्यम नीच प्रभु बचन बिचारि बिसेखु ।— तुलसी (शब्द॰) ।

७. स्वर्ग ।—अनेकार्थ, पृ॰ १४५ ।

बान ^३ संज्ञा पुं॰ [देश॰] गोला । उ॰— तिलक पलीता माथे दमन बज्र के बान । जेहि हेरहि तेहि मारहि चुरकुस करहिं निदान ।— जायसी (शब्द॰) ।

बान ^४ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ बनना]

१. बनावट । ढंग । आकार । उ॰— सकट को बान बनायो ऐसी । सुंदर अर्धचंद्र होइ जैसो ।— नंद॰, ग्रं॰, पृ॰ २५७ ।

२. सजधज । वेश विन्यास । उ॰— सब अंग छीटै लागी नीको बन्यो बान ।— नंद॰, ग्रं॰, पृ॰ ३९४ ।

३. टेव । आदत । अभ्यास । उ॰— भक्त बछल है बान तिहारी गुन औगुन न बिचारो ।—गुलाल॰, पृ॰ ४५ । क्रि॰ प्र॰—ड़ालना ।—पड़ना ।—लगना ।

बान ^५ संज्ञा पुं॰ [सं॰ वर्ण] रंग । आब । कांति । उ॰— कनकहि बान चढ़ै जिमि दाहे । तिमि प्रियतम पद नेम निबाहे ।—तुलसी (शब्द॰) ।