बानी
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]बानी ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ वाणी]
१. वचन । मुँह से निकला हुआ शब्द ।
२. मनौती । प्रतिज्ञा । उ॰— रहों एक द्विज नगर कहुँ सो असि बानी मानि । देहु जो मोहि जगदीस सुत तो पूजों सुख मानि ।— रघुराज (शब्द॰) । मुहा॰— बानी मानना=प्रतिज्ञा करना । मनौती मानना ।
३. सरस्वती ।
४. साधु महात्मा का उपदेश या वचन । जैसे,— कबीर की बानी, दादू की बानी । दे॰ 'वाणी' ।
बानी ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ वर्ण]
१. वर्ण । रंग । आभा । दमक । जैसे, बारहबानी का सोना । उ॰— उतरहिं मेघ चढ़ाहिं लै पानी । चमकाहिं मच्छ बीजु की बानी ।—जायसी (शब्द॰) ।
२. एक प्रकार की पीली मिट्टी जिससे मिट्टी के बरतन पकाने के पहले रँगते हैं । कपसा ।
बानी ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ बणिक्] बनिया । उ॰—(क) ब्राह्मण छत्री औरी बानी । सो तीनहु तो कहल न मानी ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) इक बानी पूरब धनी भयो निर्धनी फेरि ।— (शब्द॰) ।
बानी ^४ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰] दे॰ 'वाणिज्य' । उ॰— अपने चलन सो कोन्ह कुबानी । लाभ न देख मुर भइ हानी ।—जायसी (शब्द॰) ।
बानी ^५ संज्ञा पुं॰ [अं॰]
१. बुनियाद डालनेवाला । जड़ जमानेवाला ।
२. आरंभ करनेवाला । चलानेवाला । प्रवर्तक ।