बाली
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]बाली ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ बालिका, बाली] कान में पहनने का एक प्रसिद्ध आभूषण जो सोने या चाँदी के पतले तार का गोलाकार बना होता है । इसमें शोभा के लिये मोती आदि भी पिरोए जाते हैं ।
बाली ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ बाल] जो, गेहूँ, ज्वार आदि के पौधों का वह ऊपरी भाग या सीका जिसमें अन्न के दाने लगते हैं । दे॰ 'बाल' ।
२. वह अन्न जो हलवाहों आदि को उनके परिश्रम के बदले में धन की जगह दिया जाता है । यौ॰—बालोदार ।
बाली ^३ संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] हथोड़े के आकार कसेरों का एक औजार जिससे वे लोग बरतनों की कोर उठाते हैं ।
बाली ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰ बालिन्] दे॰ 'बालि' ।
बाली ^५ वि॰ [हिं॰ बालका (=अश्व)] बालका जाति का (अश्व) । उ॰—नवदून अप्पि मदझर गयंद, कज्वल सकोट उज्जल अमंद । सै पंच दिन्न बाली पवंग ।—पृ॰ रा॰, ४ ।१० ।
बाली सबरा संज्ञा पुं॰ [हिं॰ बाली (=बारी, किनारा)+हिं॰ सबरा] वह सबरा जिससे कसेरे थाली या परात की कोर उभारते हैं ।