बासी

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

बासी ^१ वि॰ [सं॰ वासर या बाँस (=गध)]

१. देर का बना हुआ । जो ताजा न हो । (खाद्य पदार्थ) जिसे तैयार हुए अधिक समय हो चुका हो और जिसका स्वाद बिगड़ चुका हो । जैसे,—बासी भात, बासी पूरी, बासी मिठाई ।

२. जो कुछ समय तक रखा रहा हो । जैसे, बासी पानी । जो सूखा या कुम्हलाया हुआ हो । जो हरा भरा न हो । जैसे, बासी फूल, बासी साग ।

४. (फल आदि) जिसे डाल से टूटे हुए अधित समय हो चुका हो । जिसे पेड़ से अलग हुए ज्यादा देर हो गई हो । जैसे, बासी अमरूद, बासी आम । मुहा॰—बासी कढ़ी में उबाल आना=(१) बुढ़ापे में जवानी का उमंग आना । (२) किसी बात का समय बिलकुल बीत जाने पर उसके संबंध में कोई वासना उत्पन्न होना । (३) असमर्थ में सामर्थ्य के लक्षण दिखाई देना । बसी बचे न कुत्ता खाय=इतना अधिक न बनाना कि बाकी बचे । चाट पोंछकर सब कुछ स्वयं खा जाना । अन्य के लिये गुंजाइश न रहना । बासी मुँह=(१) जिस मुँह में सबेरे से कोई खाद्य पदार्थ न गया हो । जैसे, बासी मुँह दवा पी लेना । (२) जिसने रात के भोजन के उपरांत प्रातःकाल कुछ न खाया हो । जैसे,—मुझे क्या मालूम कि आप अभी तक बासी मुँह हैं । यौ॰—बासी ईद=ईद का दूसरा दिन । बासी तिबासी=कई दिनों का सड़ा गला ।

बासी ^२ वि॰ [सं॰ वासिन्] रहनेवाला । निवास करनेवाला । बसनेवाला । उ॰—खासी परकासी पुनवाँसी चंद्रिका सी जाके, बासी अबिनासी अघनासी ऐसी कासी है ।—भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ २, पृ॰ २८२ ।