बिगड़ना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]बिगड़ना क्रि॰ अ॰ [सं॰ विकृत]
१. किसी पदार्थ के गूण या रूप आदि में ऐसा विकार होना जिससे उसकी उपयोगिता घट जाय या नष्ट हो जाय । असली रूप या गुण का नष्ट हो जाना । खराब हो जाना । जैसे, मशीन बिगड़ना, अचार बिगड़ना, दूध बिगड़ना, काम बिगड़ना ।
२. किसी पदार्थ के बनते या गढ़े जाते समय उसमें कोई ऐसा विकार उत्पन्न होना जिससे वह ठीक या पूरा न उतरे । जैसे,— (क) यह तस्वीर अब तक तो ठीक बन रही थी पर अब बिगड़ चली है । (ख) देखते हैं कि तुम्हारे कारण ही यह बनती हुई बात बिगड़ रही है ।
३. दुरवस्था को प्राप्त होना । खराब दशा में आना । अच्छा न रह जाना । जैसे,—(क) किसी जमाने में इनकी हालत बहुत अच्छी थी, पर आजकल ये बिगड़ गए हैं । (ख) बिगड़े घर की बात जाने दो ।
४. नीतिपथ से भ्रष्ट होना । बदचलन होना । चाल चलन का खराब होना । जैसे,—आजकल उनका लड़का बिगड़ रहा है, पर वे कुछ ध्यान ही नहीं देते ।
५. क्रुद्ध होना । गुस्से में आकर डाँट डपट करना । जैसे,—वे अपने नौकरों पर बहुत बिगड़ते हैं ।
६. विरोधी होना । विद्रोह करना । जैसे,—सारी प्रजा बिगड़ खड़ी हुई ।
७. (पशुओं आदि का) अपने स्वामी या रक्षक की आज्ञा या अधिकार से बाहर हो जाना । जैसे, घोड़ा बिगड़ना, हाथी बिगड़ना ।
८. परस्पर विरोध या वैननस्य होना । लड़ाई झगड़ा होना । खटकना । जैसे,—आजकल उन दोनों में बिगड़ी हैं ।
९. व्यर्थ होना । बैफायदा खर्च होना । जैसे,—आज बैठे बैठाए ५ । बिगड़ गए । संयो॰ क्रि॰—जाना ।