बिलग

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

बिलग ^१ वि॰ [सं॰ उप॰ वि (= पार्थक्य या राहित्य) + लग्न; हिं॰ लगना] [अन्य रूप - बिलगि, बिलगु] अलग । पृथक् । जुदा । उ॰—बिलग बिलग ह्वै चरहु सब निज निज सहित समाज ।—तुलसी (शब्द॰) ।

बिलग ^२ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ बि (प्रत्य॰) + लगना] [अन्य रूप बिलगि बिलगु]

१. पार्थक्य । अलग होने का भाव ।

२. द्वेष या और कोई बुरा भाव । रंज । उ॰—(क) देवि करौं कछु बिनय़ सो बिलगु न मानब ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) इनको बिलगु न मानिए कहि केशव पल आधु । पानी पावक पवन प्रभु त्यों असाधु त्यों साधु ।—केशव (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—मानना ।