बिसाहना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]बिसाहना ^१ क्रि॰ स॰ [हिं॰ बिसाह + ना (प्रत्य॰)]
१. खरीदना मोल लेना । क्रय करना । दाम देकर लेना । उ॰—(क) जाहिर जहान में जमानो एक भाँति भयो बेचिए बिबुध धेनु, रासभी बिसाहिए ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) हौं बनिजार तो बनिज बिसाहौ । भर व्योपार लेहु जो चाही ।—जायसी (शब्द॰) । (ग) हाटों में रखी हुई बेचने बिसाहने की वस्तुएँ ।—लक्ष्मणसिंह (शब्द॰) ।
२. जान बूझकर अपने पीछे लगाना । अपने साथ करना । जैसे, रार बिसाहना, बैर बीसाहना । उ॰—निदान पहले तो हैदरअली के बेटे टीपू सुलतान का सिर खुजलाया कि इन अँग्रेजों से बैर बिसाहा ।—शिवप्रसाद (शब्द॰) ।
बिसाहना ^२ संज्ञा पुं॰
१. मोल लेने की वस्तु । काम की चीजें जिसे खरीदें । सौदा । उ॰—सबही लीन्ह बिसाहन और घर कीन्ह बहोर ।—जायसी (शब्द॰) ।
२. मोल लेने की क्रिया । खरीद । उ॰—(क) पूरा किया बिसाहना बहुरी न आवै हट्ट ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) इहाँ बिसाहन करि चली आगे बिषमी बाट ।—कबीर (शब्द॰) ।