बीड़ा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]बीड़ा संज्ञा पुं॰ [सं॰ वीटक]
१. सादी गिलौरी जो पान में चूना, कत्था, सुपारी आदि डालकर और लपेठकर बनाऊ जाती है । खीली । मुहा॰—बीड़ा उठाना = (१) कोई काम करने का संकल्प करना । किसी काम के करने के लिये हामी भरना । पण बाँधना । उ॰—कबिरा निंदक मर गया अब क्या कहिए जाइ । ऐसा कोई ना मिले बीड़ा लेइ उठाइ ।—कबीर (शब्द॰) । (२) उद्यत होना । मुस्तैद होना । उ॰—कहे कंस मन लाय भलो भयो मंत्री दयो । लीने मल्ल बुलाय आदर कर बीरा लयो ।—लल्लू (शब्द॰) । बीड़ा डालना वा रखना = किसी कठिन काम के करने के लिये सभा में लोगों के सामने पान की गिलौरी रखकर यह कहना कि जिसमें यह काम करने की योगता हो या साहस हो वह इसे उठा ले । जो पुरुष उसे उठा ले, उसी को उसके करने का भार दिया जाता है । (यह प्रायः प्राचीन काल के दरबारों की रस्म थी जो अब उठ सी गई है) । बीढ़ा या बीरा देना = (१) कोई काम करने की आज्ञा देना । काम का भार देना । सोंपना । दे॰ 'बीड़ा डालना' । उ॰—कंस नृपति ने शकट बुलाए लेकर बीरा दीन्हों । आय नदगृह द्वार नगर में रूप प्रगठ निज कीन्हों ।—सूर (शब्द॰) । (२) नाचने, गाने, बजाने आदि का व्यवसाय करनेवालों को किसी उत्सव में सम्मिलित होकर अपना काम करने के लिये नियत करना । नाचने, गानेवालों आदि को साई देना । बयाना देना ।
२. वह डोरी जो तलवार की म्यान में मुँह के पास बँधी रहती है । विशेष—म्यान में तलवार डालकर यह डोरी तलवार के दस्ते की खूँटी में बाँध दी जाती है जिससे वह म्यान से निकल नहीं सकती ।