बृद्ध

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

बृद्ध ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. प्रवुद्ध, जिसने बुद्धत्व प्राप्त कर लिया हो । सुप्रसिद्ध बोद्ध धर्म के प्रवर्तक एक बहुत बड़े महात्मा जिनका जन्म ईसा के लगभग ५५० वर्ष पूर्व शाक्यवंशी राजा शुद्धीदन की रानी महामाया के गर्भ से नेपाल की तराई के 'लुंबिनी' नामक में साघ की पूर्णिमा को हुआ था । विशेष— इनके जन्म के थोडे़ ही दिनों बाद इनकी माता का देहात हो गया था और इनका पालन इनकी विमाता महाप्रजावती ने बहुत उत्तमतापूर्वक किया था । इनका नाम गौतम अथवा सिद्धार्थ रखा गया था और इन्हें कौशिक विश्वामित्र ने अनेक शास्त्रों, भाषाओं और कलाओं आदि की शिक्षा दी थी । बल्यावस्था में ही ये प्रायः एकांत में बैठकर त्रिविध दुःखों की निवृत्ति के उपाय सोचा करते थे । युवावस्था में इनका विवाह देवदह की राजकुमारी गोपा के साथ हुआ था । शुद्धादन ने इनकी उदासीन वृत्ति देखकर इनके मनोविनोद के लिये अनेक सुंदर प्रासाद आदि बनवा दिए थे और सामग्री एकत्र कर दी थी तिसपर भी एकांतवास और चिताशीलता कम न होती थी । एक बार एक दुर्बल वृद्ध को, एक बार एक रोगी को और एक बार एक शव को देखकर ये संसार से ओर भी विरक्त तथा उदासीन हो गए । पर पीछे एक संन्यासी की देखकर इन्होंने सोचा कि संसार के कष्टों से छुटकारा पाने का उपाय वैराग्य ही है । वे संन्यासी होने की चिंता करने लगे ओर अंत में एक दिन जब उन्हें समाचार मिला कि गोपा के गर्भ से एक पुत्र उत्पन्न हुआ है, तब उन्होने संसार को त्याग देना निश्चित कर लिया । कुछ दिनों बाद आषाढ़ की पूर्णिमा की रात को अपनी स्त्री को निद्रावस्था में छोड़कर उन्तीस वर्ष की अवस्था में ये घर से निकल गए ओर जंगल में जाकर इन्होंने प्रव्रज्या ग्रहण की । इसके उपरांत इन्होंने गया के समीप निरंजना नदी के किनारे उरुबि ग्राम में कुछ दिनों तक रहकर योग- साधन तथा तपश्चर्या की ओर अपनी काम, क्रोध, आद ि वृत्तियों का पूर्णरूप से नाश कर लिया । इसी अवसर पर घर से निकलने के प्रायः सात वर्ष बाद एक दिन आषाढ़ की पूर्णिमा की रात को महाबोधि वृक्ष के नीचे इनको उद् बोधन हुआ और इन्होंने दिव्य ज्ञान प्राप्त किया । इसी दिन से ये गौतम बुद्ध या बुद्ध देव कहलाए । इसके उपरांत ये धर्मप्रचार करने के लिये काशी आए । इनके उपदेश सुनकर धीरे धीरे बहुत से लोग इनके शिष्य और अनुयायी होने लगे ओर थोड़े ही दिनों में अनेक राजा, राजकुमार और दूसरे प्रतिष्ठित पुरुष भी इनके अनुयायी बन गए जिनमें मगध के राजा बिंबिसार भी ये । उम समय तक प्रायः सारे उत्तर भारत में उनकी ख्याति हो हो चुकी थी । कई बार महाराज शुद्धोदन ने इनको देखने के लिये कपिलवस्तु में बुलाना चाहा, पर जो लोग इनको बुलाने के लिये जाते थे, वे इनके उपदेश सुनकर विरक्त हो जाते और इन्हीं के साथ रहने लगते थे । अंत में ये एक बार स्वयं कपिलवस्तु गए थे जहाँ इनके पिता अपने बंधु- बांधवां सहित इनके दर्शन के लिये आए थे । इस समय तक शुद्धोदन को आशा थी कि सिद्धार्थ गौतम कहने सुनने से फिर गृहस्थ आश्रम में आ जायँगे और राजपद ग्रहण कर लेंगे । पर इन्होंने अपने पुत्र राहुल को भी अपने उपदेशों से मुग्ध करके अपना अनुयायी बना लिया । इसके कुछ दिनों के उपरांत लिच्छिवि महाराज का निमंत्रण पाकर ये वैशाली गए थे । वहाँ से चलकर ये संकाश्य, आवस्ती, कौशांबी, राजगृह, पाटलिपुत्र, कुशीनगर आदि अनेक स्थानों में भ्रमण करते फिरते थे; और सभी जगह हजारों आदमी इनके उपदेश से संसार त्यागते थे । इनके अनेक शिष्य भी चारों ओर धूम घूमकर धर्मप्रचार किया करते थे । इनके धर्म का इनके जीवनकाल में ही बहुत अधिक प्रचार हो गया था । इसका कारण यह या कि इनके समय में कर्मकांड का जोर बहुत बढ़ चुका था और यज्ञों आदि में पशुओं की हत्या बहुत अधिक होने लगी थी । उन्होंने इस निरर्थक हत्या को रोककर लोगों को जीवमात्र पर दया करने का उपदेश दिया था । इन्होंने प्रायः ४४ वर्ष तक बिहार तथा काशी के आस पास के प्रांतों में धर्मप्रचार किया था । अंत में कुशीनगर के पास के वन में एक शालवृक्ष के नीचे वृद्धावस्था में इनका शरीरांत या परिनिर्वाण हुआ था । पीछे से इनके कुल उपदेशों का संग्रह हुआ जो तीन भागों में होने के कारण 'त्रिपिटक' कहलाया । इनका दार्शनिक सिद्धांत ब्रह्मवाद या सर्वात्मवाद था । ये संसार को कार्य कारण के अविच्छिन्न नियम में बद्ध और अनादि मानते थे तथा छह इद्रियों और अष्टांग मार्ग को ज्ञान तथा मोक्ष का साधन समझते थे । विशेष— दे॰ 'बौद्ध धर्म' । हिंदू शास्त्रों के अनुसार बुद्धदेव दस अवतारों में से नवें अवतार और चौबीस अवतारो में से तेई सवें अवतार माने जाते हैं । विष्णु पुराण और वेदांत सूत्र आदि में इनके संबंध की बातें ओर कथाएँ दी हुई है । यौ॰— बुद्धगया= बिहार प्रदेश के गया जिले का वह स्थान जहाँ बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी । बुद्ध द्रव्य=बुद्ध संबंधी स्मृतिचिह्न । बुद्ध धर्म= दे॰ 'बौद्धधर्म' ।

२. ज्ञान । बोध (को॰) ।

३. परमात्मा (को॰) ।

४. वह जो ज्ञानी हो । ज्ञानवान् । संत (को॰) ।