बृहस्पति

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

पर्याय[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

बृहस्पति संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. एक प्रसिद्ध वैदिक देवता जो अंगिरस के पुत्र ओर देवताओं चके गुरु माने जाते हैं । विशेष— इनकी माता का नाम श्रद्धा और स्त्री का नाम तारा था । ये सभी विषयों करे पूर्ण पंडित थे और शुक्राचार्य के साथ इनकी स्पर्धा रहती थी । ऋग्वेद के ११ सूक्तों में इनकी स्तुति भरी हुई है । उनमें कहा गया है कि इनके सात मुँह, सुंदर जीभ, पैने सींग, और सौ पंख हैं और इनके हाथ में धनुष, बाण और सोने का परश रहता है । एक स्थान में यह भी कहा गया है कि ये अंतरिक्ष के महातेज से उत्पन्न हुए थे । इन्होंने सारा अंधकार नष्ट कर दिया था । यह भी कहा गया है कि ये देवताओं के पुरोहित हैं और इनके बिना यज्ञ का कोई कृत्य पूर्ण नहीं होता । ये बुद्धि और वक्तृत्व के देवता तथा इंद्र के मित्र और सहायक माने गए हैं । ऋग्वेद की अनेक ऋचाओं में इनका जो वर्णन दिया हे, वह अग्नि के वर्णन से बहुत कुछ मिलता जुलता है । 'वाचस्पति' और 'सदसस्पति' भी इनके नाम हैं । कई स्मृतियाँ और चार्वक मत के ग्रंथ इन्हीं के बनाए हुए माने जाते हैं । पुराणानुसार इनकी स्त्री तारा को सोम (चंद्रमा) उठा ले गया था जिसके कारण सोम से इनका घोर युद्ध हुआ था । अंत में ब्रह्मा ने बृहस्पति को तारा दिलवा दी । पर तारा को सोम मे गर्भ रह चुका था जिसके कारण उसे एक पुत्र हुआ था जिसका नाम बुध रखा गया था । विशेष— दे॰ 'बुध' । वैदिक काल के उपरांत इनकी गणना नवग्रहों में होने लगी । पर्या॰—सुराचार्य । गीस्पति । धिषण । जीव । अंगिरस । वाचस्पति । चारु । द्वादशरश्मि । गिरीश । दिदिव । वाक्पति । वचसापति । वागीश । द्वादशकर । गीरथ ।

२. सौर जगत् का पाँचवाँ ग्रह जो सूर्य से ४४,३०,॰॰,॰॰० मील की दूरी पर है और जिसका परिभ्रमण काल लगभग ४३३३ दिन हे । इसका व्यास ९३००० मील है । विशेष— यह सबसे बड़ा ग्रह है और इसका व्यास पृथ्वी के व्यास मे ११ गुना बड़ा है । यह बहुत चमकीला भी है और शुक्र को छोड़कर और कोई ग्रह चमक में इससे बढ़कर नहीं है । अपने अक्ष पर यह लगभग १० घंटे में घूमता है । दूरबीन से देखने से इसके पृष्ठ पर कुछ समानांतर रेखाएँ खिंची हुई दिखाई देती हैं । अनुमान किया जाता है कि यह ग्रह बादलों की मेखलाओं से घिरा हुआ है । यह अभी बालक ग्रह माना जाता है, अर्थात् इसका निर्माण हुए अभी बहुत समय नहीं बीता है । अभी इसकी अवस्था सूर्य की अवस्था से कुछ कुछ मिलती जुलती है और पृथ्वी की अवस्था तक इसे पहुँचने में अभी बहुत समय लगेगा । यह अभी स्वयं प्रकाशमान नहीं है और केवल सूर्य के प्रकाश से ही चमकता है । इसका तल भी अभी पृथ्वी तल के समान ठोस नहीं है । यह चारों ओर अनेक प्रकार के वाष्पों के मंड़ल से घिरा हुआ है । इसके साथ कम से कम पाँच उपग्रह या चंद्रमा हैं जिनमें से तीन उपग्रह हमारे चंद्रमा मे बडे हैं और दो छोटे ।