बेदर वि॰ [फ़ा॰] जिसका ठिकाना न हो । उ॰—थी अभी चिताएँ चटक रहीं रावी तट पर, थे अभी हजारों भटक रहे बेघर वेदर ।—सूत॰, पृ॰ ४४ ।