बेर
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]बेर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ बदरी या बदर प्रा॰ बयर]
१. प्रायः सारे भारत में होनेवाला मझोले आकार का एक प्रसिद्ध कँटीला वृक्ष । विशेष—इसके छोटे बड़े कई भेद होते हैं । यह वृक्ष जब जंगली दशा में होता है, तब झरबेरी कहलाता है और जब कलम लगाकर तैयार किया जाता है तब उसे पेबंदी (पैवंदी) कहते हैं । इसकी पत्तियाँ चारे के काम में और छाल चमड़ा सिझाने के काम में आती है । बंगाल में इस वृक्ष की पत्तियों पर रेशम के कीड़ें भी पलते हैं । इसकी लकड़ी कड़ी और कुछ लाली लिए हुए होती है और प्रायः खेती के औजार बनाने और इमारत के काम में आती है । इसमें एक प्रकार के लबोतरे फल लगते हैं जिनके अंदर बहुत कड़ी गुठली होती है । यह फल पकने पर पीले रंग का जाता है और मीठा होने के कारण खूब खाया जाता है । कलम लगाकर इसके फलों का आकार और स्वाद बहुत कुछ बढ़ाया जाता है । पर्या॰—बदर । कर्कधू । कोल । सौर । कंटकी । वक्रकंटक ।
२. बेर के वृक्ष का फल ।
बेर ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ बार]
१. बार । दफा । दे॰ विशेष और मुहा॰ 'बार' शब्द में । उ॰—जो कोई जाया इक बेर माँगा । जन्म न हो फिर भूख नाँगा ।—जायसी (शब्द॰) ।
२. विलंब । देर । उ॰—बेर न कीजे बेग चलि, बलि जाउँ री बाल ।— ब्रज॰ ग्रं॰, पृ॰ ६ । यौ॰—बेर बखत=समय कुसमय । मौके बैमोके । जरूरत के समय । उ॰—अपने हाथ में बेर बखत के लिये पूरा स्टौक रखना जरूरी है ।—मैला॰, पृ॰ २३० ।