बोर
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]बोर ^१ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ बोरना] डुबाने की क्रिया । डुबाव । जैसे,— एक बोर में रग अच्छा नहीं चढ़ेगा, कई बोर दो । क्रि॰ प्र॰—देना । उ॰—अपने मन संकोच करत है किन रँग बोर दई ।—कबीर श॰, भा॰ ३, पृ॰ ४७ ।
बोर ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ वर्त्तुल]
१. चाँदी या सोने का बना हुआ गोल और कँगूरेदार घुँघरू जो आभूषणों में एवं वस्त्रादि में गूँथा जाता है । जैसे, पाजेब के बोर । उ॰—हिले रेशम के छोर, शिंजित हैं बोर बोर ।—अर्चना, पृ॰ ८१ ।
२. गुंबज के आकार का सिर पर पहनने का गहना जिसमें मीनाकारी का काम होता है और रत्नादि भी जड़े हुए होते हैं । इसी 'बीजु' भी कहते हैं ।
बोर † ^३ संज्ञा पुं॰ गड्ढा । खड्ड । बिल ।
बोर ‡ ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰ बदर] बेर का फल बदरी फल । उ॰— उमगे प्रभु भीलणी आँचा, ऐठाँ बोर अरोगै आप ।—रघु॰ रू॰, पृ॰ १४२ ।