बोहनी
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]बोहनी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ बोधन(= जगाना)]
१. किसी सौदे की पहली बिक्री । उ॰—है कोइ संत सुजान करै मोरी बोहनियाँ ।—कबीर श॰, भा॰ ३, पृ॰ ४८ ।
२. किसी दिन की पहली बिक्री । उ॰—(क) मारग जात गाहि रह्यो री अँचरा मेरो नाहिन देत हों बिना बोहनी ।—हरिदांस (शब्द॰) । (ख) औरन छांड़ि परे हठ हमसी दिन प्रति कलह करत गहि ड़गरी । बिन बोहनी तनक नहिं दैहौं ऐसेहि छीनि लेहु बरु सगरी ।—सूर॰ (शब्द॰) । विशेष—जबतक बोहनी नहीं हुई रहती तबतक दूकानदार किसी को उधार सौदा नहीं देते । उनका विश्वास है कि पहली बिक्री यदि अच्छी होगी, तो दिन भर अच्छी होगी । इस पहली बिक्रि का शकुन किसी समय सब देशों में माना जाता था ।
बोहनी † ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ बोह या बोवना] बोने की क्रिया । बोना । वपन करना ।