भँगार

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

भँगार ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ भड्न]

१. जमीन में का वह गड्ढा जो बरसात के दिनों मे आपसे आप हो जाता है और जिसमें वर्षा का पानी समाता हें ।

२. वह गड्ढा जो कुआँ बनाते समय खोदा जाता है ।

भँगार ^२ संज्ञा सं॰ [हिं॰ भाँग] घास फूस । कूडा़ करकट । उ॰— (क) माला फेरे कुछ नहीं डारि मुआ गल भार । ऊपर ढेला ही गल भीतर करा भँगार ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) वैष्णव भया तो क्या भया माला पहिरी चार । ऊपर कलो लपेट के भीतर भरा भँगार ।—कबीर (शब्द॰) ।