भँवरभीख संज्ञा पुं॰ [हिं॰ भँवर + भीख] वह भीख जो भौरे के समान धूम फिरकर माँगी जाय । तीन प्रकार की भिक्षा में से दूसरी । उ॰—भँवरभीख मध्यम कही सुनौ संत चित लाय । कहै कबीर जाको गही मध्यम माहिं समाय ।— कबीर (शब्द॰) ।