भकुवाना पु क्रि॰ अ॰ [हिं॰ भकुवा + ना] दे॰ 'भकुआना' । उ॰—कासी में जो प्रान तिंयागे सो पत्थर भे आई । कहैं कबीर सुनो भाई साधो भरमे जन भकुवाई ।—कबीर॰ श॰, भा॰ ३, पृ॰ ५४ ।