भक्तमाल

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

भक्तमाल संज्ञा पुं॰ [सं॰ भक्त + माल] वह ग्रंथ जिसमें हरिभक्तों का वर्णन हो । इस नाम का एक ग्रंथ जिसमें भक्तों क ा चरित वर्णन है । इसके रचनाकार नाभादास जी हैं । उ॰— 'भक्तमाल' में भी इनका वर्णन मिलता है ।—अकबरी॰, पृ॰ ३९ ।