भगण
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]भगण संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. खगोल में ग्रहों का पूरा चक्कर । विशेष—यह ३६० अंशका होता है जिसे ज्योतिषीगण यथेच्छ राशियों और नक्षत्रों में विभक्त करते हैं । इस चक्कर को शीघ्रगामी ग्रह स्वल्प काल में और मंदगामी दीर्घ काल में पूरा करते हैं । आजकल के ज्योतिषी इस चक्कर का प्रारंभ रेवती के योगतारा से मानते हैं । सूर्यसिद्धांत में ग्रहों का भगण सतयुग के प्रारंभ से माना गया है; पर सिद्धांत- शिरोमणि आदि में ग्रहों के भगण का हिसाब कल्पादि से लिया जाता है ।
२. छंदःशास्त्रानुसार एक गण जिसमें आदि का एक वर्ण गुरु और अंत के दो वर्ण लघु होते हैं । जैसे, पाचन, भोजन आदि ।