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भद्रा

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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भद्रा संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. केकयराज की एक कन्या जो श्रीकृष्ण जी को ब्याही थी ।

२. रास्ता ।

३. आकाशगंगा ।

४. द्वितीया, सप्तमी, द्वादशी तिथियों की संज्ञा ।

५. प्रसारिणी लता ।

६. जीवती ।

७. बरियारी ।

८. शमी ।

९. बच ।

१०. दती ।

११. हलदी ।

१२. दूर्वा ।

१३. चंसुर ।

१४. गाय ।

१५. दुर्गा ।

१६. छाया से उत्पन्न सूर्य की एक कन्या ।

१७. पिंगल में उपजाति वृत्त का दसवाँ भेद ।

१८. कटहल ।

१९. कल्याणकारिणी शक्ति ।

२०. पृथ्वी ।

२१. पुराणानुसार भद्रश्ववर्ष की एक नदी का नाम जो गंगा की शाखा कही गई है ।

२२. बुद्ध की एक शक्ति का नाम ।

२३. सुभद्रा का एक नाम ।

२४. कामरूप प्रदेश की एक नदी का नाम ।

२५. फलित ज्योतिष के अनुसार एक योग जो कृष्ण पक्ष की तृतीया और दशमी के शेषार्ध में तथा अष्टमी और पूर्णिमा के पूर्वाद्ध में रहता है । विशेष—जब यह कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि में होता है, तब पृथ्वी पर जब मेष, वृष, मिथुन और वृश्चिक राशि में होता है, तब स्वर्ग लोक में और जब कन्या, धन, तुला और मकर राशि में होता है, तब पाताल में रहता है । इस योग के स्वर्ग में रहने के समय यदि कोई कार्य किया जाय तो कार्यसिद्धि और पाताल में रहने के समय किया जाय तो धन की प्राप्ति होती है । पर यदि इस योग के इस पृथ्वी पर रहने के समय कोई कार्य किया जाय तो वह बिलकुल नष्ट हो जाता है । अतः भद्रा के समय लोग कोई शुभ कार्य नहीं करते । इसे धिष्टिभद्रा भी कहते हैं ।

२६. बाधा । रोक । (बोल चाल) । मुहा॰—किसी के सिर की भद्रा उतारान =किसी प्रकार की हानि विशेषतः आर्थिक हानि होना । भद्रा लगाना =बाधा उत्पन्न करना ।