भरद्वाज

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

भरद्वाज संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. अंगिरस गोत्र के उत्थ्य ऋषि की स्त्री ममता के गर्भ में से उतथ्य के भाई बृहस्पति के वीर्य से उत्पन्न एक वैदिक ऋषि जो गोत्रप्रवर्तक और मंत्रकार थे । विशेष— कहते हैं, एक बार उतथ्य की अनुपस्थिति में उनके भाई बृहस्पति ने ममता के साथ संसर्ग किया था जिससे भरद्वाज का जन्म हुआ । अपना व्यभिचार छिपाने के लिये ममता ने भरद्वाज का त्याग करना चाहा था, पर बृहस्पति ने उसको ऐसा करने से मना किया । दोनों में कुछ विवाद भी हुआ, पर अत में दोनों ही नवजात बालक को छोड़कर चले गए । उनके चले जाने पर मरुदगण इनको उठा ले गए और उन्हीं ने इनका पालन किया । जब भरत ने पुत्रकामना से मरुत्स्तोम यज्ञ किया, तब मरुद्गण ने प्रसन्न होकर भरद्वाज को उनके सुपुर्द कर दिया । महाभारत में लिखा है, एक बार ये हिमालय में गंगा स्नान कर रहे थे । उधर से जाती हुई धृताची अप्सरा को देखकर इनका वीर्यपात हो गया, जिससे द्रोणाचार्य का जन्म हुआ । एक बार इन्होंने भ्रम में पड़कर अपने मित्र रैभ्य को शाप दे दिया था; और पीछे से पछताकर जल मरे थे । पर रैभ्य के पुत्र उर्वावसु ने अपनी तपस्या के प्रभाव से इनको फिर जिला लिया था । वनवास के समय एक बार रामचंद्र इनके आश्रम में भी गए थे । भावप्रकाश अनुसार अनेक ऋषियों के प्रार्थना करने पर ये स्वर्ग जाकर इंद्र से आयुर्वेद सीख आए थे । ये राजा दिवोदास के पुरोहित और सप्तर्षियों में से भी एक माने जाते हैं ।

२. बौद्धौं से अनुसार एक अहंत का नाम ।

४. एक प्राचीन देश का नाम ।

५. भरद्वाज ऋषि के वशज या गोत्रापत्य ।

६. भरत पक्षी ।