भर्तृहरि

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

भर्तृहरि संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. प्रसिद्ध कवि जो उज्जयिनी के राजा विक्रमादित्य के छोटे भाई और गधर्वसेन के दासीपुत्र थे । विशेष— कहते हैं, ये अपनी स्त्री के साथ बहुत अनुराग रखते थे । पर पीछे से उसकी दुश्वरित्रता के कारण संसार से विरक्त हो गए थे । यह भी कहा जाता है की काशी में आकर योगी होने के उपरांत इन्होंने श्रृंगारशतक, नीतिशतक, वैराग्यशतक, वाक्यपदीय और भट्टिकाव्य आदि कई ग्रंथों की रचना की थी । कुछ लोगों का यह भी विश्वास है कि ये अपने भाई विक्रमादित्य के ही हाथ से मारे गए थे । आजकल कुछ योगी या साधु हाथ में सारंगी लेकर इनके संबंध के गीत गाते और भीख माँगते हैं । ये लोग अपने आपको इन्हीं के संप्रदाय का बतलाते हैं ।

२. एक प्रसिद्ध वैयाकरण । विशेष— संस्कृत व्याकरण की एक शाखा पाणिनीय व्याकरण के ये बहुत बड़े आचार्य थे । 'वाक्यपदीय' नामक व्याकरण दर्शन के अत्यंत प्रौढ़ ग्रंथ की उन्होंने रचना की है जो व्याकरण में ही नहीं अन्य संस्कृत दर्शन के ग्रंथों में प्रमाणरूप से आदर- पूर्वक उद्धृत किया गया है । 'हरि' संभवतः इनका नाम- संक्षेप था और इसी नाम से इनका उल्लेख किया गया है । महाभाष्यकार द्वारा निर्दिष्ट स्फोटवाद या शब्दब्रह्मवाद मत के प्रौढ़ प्रतिष्ठापक के रूप में 'हरि' का नाम प्रसिद्ध है । कहते हैं कि व्याकरण महाभाष्य की टीका भी इन्होंने लिखी थी जिसकी पूर्ण प्रति अब तक उपलब्ध नहीं है ।

३. एक संकर राग जो ललित और पुरज के मेल से बनता है इसमें सा वादी और म संवादी होता है ।