भाँड़
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]भाँड़ ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ भण्ड]
१. विदूषक । मसखरी । बहुत अधिक हँसी मजाक करनेवाला ।
२. एक प्रकार के पेशेवर जो प्रायः अपना समाज बनाकर रहते हैं और महफिलों आदि में जाकर नाचते गाते, हास्यपूर्ण स्वाँग भरते और नकलें उतारते हैं ।
३. हँसी दिल्लगी । भाँड़पन ।
४. वह जिसे किसी की लज्जा न हो । नगा । बेहया ।
५. सत्यानाश । बरबादी । उ॰— तुलसी राम नाम जपु आलस छाँड़ । राम विमुख कलिकाल को भयो न भाँड़ ।— तुलसी (शब्द॰) ।
भाँड़ ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ भाण्ड, हिं॰ भाँड़ा]
१. बरतन । भाँड़ा ।
२. भंडाफोड़ । रहस्योद् घाटन । उ॰— वह गुरु बादि छोभ छल छाँड़ू । इहाँ कपट कर होइहिं भाँड़ू ।— तुलसी (शब्द॰) ।
३. उपद्रव । उत्पात । गड़बड़ी । उ॰— कबिरा माया मोहनी, जैसे मीठी खाँड़ । सतगुर की किरपा भई नातर करती भाँड़ ।— कबीर (शब्द॰) ।
भाँड़ ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ भ्राष्ट] दे॰ 'भाड़' ।