भाउ

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

भाउ पु † ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ भाव]

१. चित्तवृत्ति । विचार । भाव ।

२. प्रेम । प्रीति । उ॰— (क) ते नर यह सर तजइ न काऊ । जिनके राम चरन भल भाऊ ।— तुलसी (शब्द॰) । (ख) राग रोष दोष पोषे गोगन समेत मन इन्ह की भगति कीन्हों इन्ही को भाउ मै ।— तुलसी (शब्द॰) । (ग) सो पद पंकज सुंदर नाउ । इत ही राखि गए भरि भाउ ।— नद॰ ग्रं॰, पृ॰ २२६ ।

भाउ ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ भव] उत्पत्ति । जन्म । उ॰— होत न भूतल भाउ भरत को । अचर सचर चर अचर करत को ।— तुलसी (शब्द॰) ।

भाउ ^३ संज्ञा पुं॰ दे॰ 'भाव' ।