भाण

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

भाण संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. नाट्यशास्त्रानुसार एक प्रकार का रूपक जो नाटकादि दस रूपकों के अतर्गत है । विशेष— यह एक अंक का होता है और इसमें हास्य रस की प्रधानता होती है । इसका नायक कोई निपुण पडित वा अन्य चतुर व्यक्ति होता है । इसमें नट आकाश की ओर देखकर आप ही आप सारी कहानी उक्ति प्रत्युक्ति के रूप में कहता जाता है, मानो वह किसी से बात कर रहा हो । वह बीच बीच में हँसता जाता और क्रोधादि करता जाता है । इसमें धूर्त के चरित्र का अनेक अवस्थाओं महित वर्णन होता है । बीच बीच में कहीं कहीं संगीत भी होता है । इसमें शौर्य और सौभाग्य द्वारा श्रृंगाररस /?/ होता है । संस्कृत भाणों में कौशिकी वृत्ति द्वारा कथा का वर्णन किया जाता है । यह दृश्यकाव्य है ।

२. ब्याज । बहाना । मिस ।

३. ज्ञान । बोध ।