भात
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]भात ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ भक्त, पा॰ भक्त, प्रा॰ भत्त]
१. पानी में उबाला हुआ चावल । पकाया हुआ चावल । उ॰— (क) अवभू वो तनु सवल राता । नाचै बाजन बाज वराता । मोर के माथे दूलह दीन्हों अकथा जोरि कहाता । मड़ये क चारन समधी दीन्हों पुत्र बहावल माता । दुलहिन लीपि चौक बैठाए निरभय पद परमाता । भातहि उलटि बरतहि/?/ भली बनी कुशलाता ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) पहिले भात परोसे आना । जनहु सुबास कपूर बसाना ।— सूर (शब्द॰) । (ग) नंद बुलावत है गोपाल । आवहु बेगि बलैया लेहौं सुंदर नैन बिसाल । परसेउ थार धरेउ मग चितवत बेगि चली तुम लाल । भात सिरात तात दुख पावत क्यों न चलो तत्काल ।— सूर (शब्द॰) ।
२. विवाह की एक रसम । विशेष— यह विवाह के दूसरे वा तीसेर दिन होती है । इसमें समधी को भात खाने के लिये कन्या के घर बुलाया जाता और उसे भांत खिलाया जाता है । भात खाने के लिये उसे कुछ द्रव्य आदि भी भेंट किया जाता है । इसमें दोनों समधी मांडव में चौक पर बैठकर भात खाते हैं ।
भात ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. प्रभात । सबेरा ।
२. दीप्ति । प्रकाश ।
भात ^३ वि॰ चमकीला । प्रकाशयुक्त । व्यक्त [को॰] ।