भुगतना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

भुगतना पु ^१ क्रि॰ स॰ [सं॰ भुक्ति] भोग करना । विषय करना । उ॰—बालक ह्वै भग द्वारे आवा । भग भुगतन कूँ पुरिष कहावा ।—कबीर ग्रं॰, पृ॰ २४४ ।

भुगतना ^२ क्रि॰ स॰ [सं॰ भुक्ति] सहन । झेलना । भोगना । उ॰— (क) देह धरे का दंड है सब काहू को होय । ज्ञानी भुगतै ज्ञान करि अज्ञानी भुगते रोय ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) हम तौ पाप कियो भुगतै को पुण्य प्रगट क्यों निठुर दियो री । सूरदास प्रभु रूप सुधानिधि पुट थोरी विधि नहीं बियो री ।—सूर (शब्द॰) । (ग) पहले हों भुगतौं जो पाप । तनु धरि कै सहिहौं संताप ।—लल्लू (शब्द॰) । (घ) ओर तो लोग दुखी अपने दुख मैं भुगत्यों जग क्लेश अपारा ।— निश्चल (शब्द॰) । विशेष—इस क्रिया का प्रयोग 'अनिष्ट भोग' के सहने में होता है । जैसे, सजा भुगतना । दुःख भुगतना । सं॰ क्रि॰—लेना । मुहा॰—भुगत लेना = समझ लेना । निपट लेना । जैसे,—आप चिंता न करें, मैं उनसे भुगत लूँगा ।

भुगतना ^३ क्रि॰ अ॰

१. पूरा होना । निबटना । जैसे, देन का भुगतना; काम का भुगतना ।

२. बीतना । चुकना । जैसे, दिन भुगतना ।