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भूत

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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भूत ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. वे भूल द्रव्य जो सृष्टि के मुख्य उपकरण है और जिनकी सहायता से सारी सृष्टि की रचना हुई है । द्रव्य । महाभूत । विशेष— प्राचीन भारतीयों ने सावयव सृष्टि के पाँच मूलभूत या महाभूत माने है जो इस प्रकार है— पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि और आकाश । पर आधुनिक बैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि वायु और जल मूल भूत या द्रव्य़ नहीं है, बल्कि कई मूल भूतों या द्रव्यों के संयोग से बने हैं । पाश्चात्य बैज्ञानितों ने प्रायः ७५ मूल भूत माने हैं जिनमें से पाँच वाष्प, दो तरल तथा शेष ठोस है । पर इन समस्त भूल भूनों में भी एक तत्व ऐसा है जो सब में समान रूप से पाया जाता है, जिससे सिद्ध होता है कि ये मुल भूल भी वास्तव में किसी एक ही भूत के रुपांतर हैं । अभी कुछ ऐसे भूतों का भी पता लगा है जो भूल भूल हो सकते है, पर जिनके विषय में अभी तक पूर्णा रूप से कुछ निश्चय नहीं हुआ है । वि॰ दे॰ 'द्रव्य॰' ।

२. सृष्टि का कोई जड़ वा चेतन, अचर वा चर पदार्थ वा प्राणी । यौ॰— भूतदया = जड़ और चेतन सबके साथ के जानेवाली दया ।

३. प्राण । जीव ।

४. सत्य ।

५. वृत्त ।

६. कातिंकेय ।

७. योगिद्र ।

८. वह औषध जिसके सेवन से प्रेतों और पिशाचों का उपद्रव शांत होता है ।

९. लोध ।

१०. कृष्ण पक्ष ।

११. पुराणानुसार पौरवी के गर्भ से उत्पन्न वसुदेव के बारह पुत्रों में से सबसे बड़े पुत्र का नाम ।

१२. बीता हुआ समय । गुजरा हुआ जमाना

१३. व्याकारण के अनुसार क्रिया के तीन प्रकार के मुख्य कालों में से एक । क्रिया का वह रुप जिससे यह सूचित होता हो कि क्रिया का व्यापार समाप्त हो चुका । जैसे,— मैं गया था; पानी बरसता था ।

१४. पुराणानुसार एक प्रकार के पिशाच य़ा देव जो रुद्र के अनुचर हैं और जिसका मुँह नीचे की और लटका हआ या ऊपर की और उठा हुआ माना जाता है । ये बालकों को पीड़ा देनेवाले ग्रह भी कहे जाते है ।

१५. मृत शरीर । शव ।

१६. मृत प्राणी की आत्मा ।

५७. वे कल्पित आत्माएँ जिनके विषय में यह माना जाता है कि वे अनेक प्रकार के उपद्रव करती और लोगों को बहुत कष्ट पहुँचाती है । प्रेत । जिन । शैतान । विशेष— भूतों और प्रेतों आदि की कल्पना किसी न किसी रूप मे प्रायः सभी जातियों और देशों में पाई जाती है । साधारणतः लोग इनके रुपों और व्यापारो आदि के संबध में अनेक प्रकार की विलक्षण कल्पनाएँ कर लेते हैं और इनके उपद्रव आदि से बहुत ड़रते हैं । अनेक अवसरों पर इनके उपद्रवों से बचने तथा इन्हें प्रसन्न रखने के लिये अनेक प्रकार के उपाय भी किए जाते है । साधारणतः यह माना जाता है कि मृत प्राणियों की जिन आत्माओं को मुक्ति नहीं मिलती, वही आत्माएँ चारों और घुमा करती है और समय समय पर उपद्रव आदि करके लोगों को कष्ट पहुँचाती है । इनका विचरणकाल रात और निवासस्थान एकांत या भीषण वन आदि माना जाता है । यह भी कहा जाता है के ये भूत कभी कभी किसी के सिर पर, विशेषतः स्त्रियों के सिर पर, आ चढते है उनसे उपद्रव तथा बकवाद कराते हैं । क्रि॰ प्र॰— उतरना ।—उतारना ।— चढ़ना ।—झाड़ना ।— लगना । मुहा॰— (किसी बात का) भूत चढ़ना या सवार होना = (किसी बात के लिये) बहुत अधिक आग्रह या हठ होना । जैसे,— तुम्हें तो हर एक बात का इसी तरह भूत चढ़ जाता है । भूत चढ़ना या सवार होना =बहुत अधिक क्रोध होना । कुपित होना ।जैसै,— उनसे मत बोलो, इस समय उनपर भूत बढा है । विशेष— इन दोनों मुहावरों में 'चढना' के स्थान पर 'उतरना' होने से अर्थ बिलकुल उलट जाता है । मुहा॰— भूत बनना(१) नशे में चूर होना । (२) बहुत अधिक क्रोध में होना । (३) किसी काम में तन्मय होना । भूत बनकर लगना =बुरी तरह पीछे लगना । किसी तरह पीछा न छोड़ना । भूत की मिठाई या पकवान = (१) वह पदार्थ जो भ्रम से दिखाई दे, पर वास्तव में जिसका अस्तित्व न हो । विशेष— लोग कहते है कि भूत प्रेत आकार मिठाई रख जाते है, जो देखने में तो मिठाई ही हीती है, पर खाने या छुने पर मिठाई नहीं रह जाती, राख मिट्टी बिष्ठा, आदि हो जाती है । (२) सहज में मिला हुआ धन जो शीघ्र ही नष्ट हो जाय । उ॰—भूत की मिठाई जैसी साधु की भुठाई तैसी स्यार की ढिठाई ऐसी क्षीण छहुँ ऋतु है ।— केशव (शब्द॰) ।

भूत ^२ वि॰

१. गत । बीता हुआ । जैस, भूतपूर्व । भूतकाल ।

२. युक्त । मिला हुआ ।

३. समान । सद्दश ।

४. जो हो चुका हो । हो चुका हुआ । विशेष— इन अथों में इसका व्यवहार प्रायः यौगिक शब्दों के अंत में होता है ।