भृगु
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]भृगु संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. एक प्रसिद्ध मुनि जो शिव के पुत्र माने जाते हैं । विशेष—प्रसिद्ध है कि इन्होंने विष्णु की छाती में लात मारी थी । इन्हीं के वंश में परशुराम जी हुए थे । कहते हैं, इन्हीं 'भृगु' और 'अगिरा' तथा 'कपि' से सारे संसार के मनुष्यों की सृष्टि हुई है । ये सप्तर्षियों में से एक मान जाते हैं । इनकी उत्पत्ति के विषय में महाभारत में लिखा है कि एक बार रुद्र ने एक बड़ा यज्ञ किया था, जिसे देखन के लिये बहुत से देवता, उनकी कन्याएँ तथा स्त्रियाँ आदि आई थीं । जब ब्रह्मा उस यज्ञ में आहुति देने लगे, तब देवकन्याओं आदि को देखकर उनका वीर्य स्खलित हो गया । सूर्य ने अपनी किरणों से वह वीर्य खींचकर अग्नि में डाल दिया । उसी वीर्य से अग्निशिखा में से भृगु की उत्पत्ति हुई थी ।
२. परशुराम ।
३. शुक्रचार्य ।
४. शुक्रवार का दिन ।
५. शिव ।
६. कृष्ण (को॰) ।
७. जमदग्नि ।
८. दे॰ 'सानु' ।
९. पहाड़ का ऐसा किनारा जहाँ से गिरने पर मनुष्य बिलरकुल नीचे आ जाय, बीच में कहीं रुक न सके ।