भैरव
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]भैरव ^१ वि॰ [सं॰]
१. जो देखने में भयंकर हो । भीषण । भयानक उ॰— पड़िया जुड़ पतसाह सुँ भैरव डूँगरसीह । — रा॰, रू॰, पृ॰ ३७ ।
२. दुःखपुर्ण (को॰) ।
३. भैरव संबंघी (को॰) ।
४. जिसका शब्द बहुत भीषण हो ।
भैरव ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. शंकर । महादेव ।
२. शिव के एक प्रकार के गण जो उन्हों के अवतार माने जाते है । विशेष— पुराणानुसार जिस समय अंधक राक्षस के साथ शिव का युद्ध हुआ था, उस समय अंधक की गदा से शिव का सिर चार टुकड़े हो गया था और उसमें से लहु की धारा बहने लगी थी । उसी धारा से पाँच भँरवों री उत्पत्ति हुई थी । तात्रिंकों के अनुसार, और कुछ पुराणों के अनुसार भी, भैरवों, की संख्या साधारणतः आठ मानी जाती है जिनके नाओं के संबध में कुछ मतभेद है । कुछ के मत से महाभैरव, संहार भैरव, असितांग भैरव, रुरुभैरद, कालभैन्व, क्रोधभैरव, ताभ्र- चुड़ और चंद्रचुड़ तथा कुछ के मत से असितांग, रूरू चंड़, क्रोध, उन्मत्त, कपाल, भीषण और संहार ये आठ भैरव है । तांत्रिक लोग भैरवो की विशेष रूप से उपासना करते है ।
३. साहित्य में भयानक रस ।
४. एक नाग का नाम ।
५. एक नद का नाम ।
६. एक राग का नग्म । विशेष— हनुमत के मत से यह राग छह रागों में से मुख्य और पहला है, और ओड़व जाति का है; क्योकि इसमें ऋषभ और पंचम नहीं होता । पर कुछ लोग इसे षाड़व जाति का भी और कुछ संपूर्ण जाति का भी मानते है । इसके गाने की ऋतृ शरद, वार रवि और समय प्रातःकाल है । हनुमान के मत से भैरवी, बैरारी, मधुमाधवी, सिंधवी और बंगाली ये पाँच इसकी रागिनियाँ और हर्ष तथा सोमेस्वर के मत से भैरवी गुर्जरी, रेवा, गुणकली, बंगाली और बहुली ये छह इसकी रागिनियाँ है । इसकी रागिनियों और पुत्रों की संख्या तथा नामों के संबँध में आचायों में बहुत मतभेद है । यह हास्यरल का राग माना जाता है और इसका सहचर मधुमाधव तथा सहचरी मधुमाधवी है । एक मत से इसका स्वरग्रम ध, नि, सा, रि, ग, म, प, और दूपरे मत से ध, नि, सा, रि, ग, म है ।
७. ताल के साठ मुख्य भेदों में से एक ।
८. कपाली ।
९. भयानक शब्द ।
१०. वह जो मदिरा पीते पीते वमन करने लगे (तात्रिक) ।
११. एक पर्वत का नाम (को॰) ।
१२. भय । खोफ । यौ॰— भैरवकारक = भयका़रक । भयावना । ड़रावना भैरव- तर्जक= विष्णु ।