भोज
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]भोज ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ भोजन या भोज्य]
१. वहुत से लोगों का एक साथ बैठकर खाना पीना । जेवनार । दावत । यौ॰—भोजभात= बच्ची पक्की रसोई का ज्योनार ।
२. भीज्यपदार्थ । खाने की चीज ।
३. ज्वार और भाँग के योग से बनी हुई एक प्रकार की शराब जो पूने की ओर मिलती है ।
भोज ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. भाजकट नामक दश । जसे आजकल भोजपुर कहते हैं ।
२. चंद्रवंशियों के एक वंश का नाम ।
३. पुराणनुसार शांति देवी के गर्भ से उत्पन्न वसुदेव के एक पुत्र का नाम ।
४. महाभारत के अनुसार राजा द्रुह्मु के एक पुंत्र का नाम ।
५. श्रीकृष्ण के सखा एक स्बाल का नाम । उ॰—अर्जुन भोज अरु सुबल श्रीदामा मधुंमंगल इक ताक ।—सूर (शब्द॰) ।
६. कान्यकुब्ज के एक प्रसिद्ध राजा जो महाराज रामभद्र देव के पुत्र थे । इन्होंने काशमीर तक अधिकार किया था । ये नवीं शताव्दी में हुए थे ।
७. मालवे के परमारवंशी एक प्रसिद्ध राजा जो संस्कृत के बहुत बड़ े विद्वान्, कवि और विद्याप्रेमी थे । इनका काल १० वीं शती का अंत और ११ वीं शती का प्रारंभ माना जाता है । विशेष—ये धारा नगरी के सिंधुल नामक राजा के लड़के थे और इनकी माता का नाम सावित्री था । जब ये पाँच वषं के थे, तभी इनके पिता अपना राज्य और इनके पालनपोषण का भार अपने भाई मुंज पर छोड़कर स्वर्गवासी हुए थे । र्मुज इनकी हत्वा करना चाहता । था, इसलिये उसने बगाल के वत्सराज को बुलाकर उसको इनकी हत्या का भार सौंपा । वत्सराज इन्हें बहाने से देवी के सामने बलि देने के लिये ले गया । बहाँ पहुँचने पर जब भोज को मालूम हुआ कि यहाँ मैं बलि चढ़ाया जाऊँगा, तब उन्होंने अपनी जाँघ चीरकर उसके रक्त से बड़ के एक तै पर दो श्लोक लिखकर वत्सराज को दिए और कहा कि थे मुंज को दे देना । उस समय वत्सराज को इनकी द्दत्या करने का साहस न हुआ और उसने इन्हें अपने यहाँ ले जाकर छिया रखा । जब वत्सराज भोज का कृत्रिम कटा हुआ सिर लेकर मुंज के पास गया, और भोज के श्लोक उसने उन्हें दिए, तब मुंज को बहुत पश्चात्ताप हुआ । मुंज को बहुत विलाप करते देखकर वत्सराज ने उन्हें असल हाल बतला दिया और भोज को लाकर उनके सामने खड़ा कर दिया । मुंजने सारा राज्य भोज को दे दिया और आप सस्त्रीक वन को चले गए । कहते हैं, भोज बहुत बड़े वीर, प्रतापी, पंडित और गुण- ग्राही थे । इन्होंने अनेक देशों पर विजय प्राप्त की थी और कई विषयों के अनेक ग्रंथों का निर्माण किया था । इनका समय १० वीं ११ वीं शताब्दी माना गया है । ये बहुत अच्छे कवि, दार्शनिक और ज्योतिषी थे । सरस्वतीकठाभरण, श्रृगारमंजरी, चंपूरामायण, चारुचर्या, तत्वप्रकाश, व्यवहार- समुच्चय आदि अनेक ग्रंथ इनके लिखे हुए बतलाए जाते हैं । इनकी सभा सदा बड़े बड़े पंडितों से सुशोभित रहती थी । इनकी स्त्री का नाम लीलावती था जो बहुत बड़ी विदुषी थी ।