भ्रमर
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]भ्रमर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. भौंरा । वि॰ दे॰ 'भौंरा' । यौ॰—भ्रमरगुफा = योगशास्त्र के अनुसार हृदय के अंदर का एक स्थान । उ॰—केवल सकल देह का साखी भ्रमरगुफा अटकाना ।—कबीर (शब्द॰) ।
२. उद्धव का एक नाम । यौ॰—भ्रमरगीत =वह गीत या काव्य जिसमें भ्रमर को संबोधित करते हुए उद्धव के प्रति ब्रज की गोपियों का उपालंभ हो ।
३. दोहे का पहला भेद जिसमें २२ गुरु और ४ लघु वर्ण होते हैं । उ॰—सीता सीतानाथ को गावों आठो जाम । इच्छा पूरी जो करै औ देवै विश्राम ।—(शब्द॰)
४. कुलाल चक्र । चाक (को॰) ।
५. छप्पय का तिरसठवाँ भेद जिसमें ८ गुरु, १३६ लघु, १४४ वर्ण या कुल १५२ मात्राएँ होती हैं ।
६. सिरा (को॰) ।