मंडल
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]मंडल संज्ञा पुं॰ [सं॰ मण्डल]
१. चक्र के आकार का घेरा । किसी एक बिंदु से समान अंतर पर चारों ओर घूमी हुई परिधि । चक्कर । गोलाई । वृत्त । मुहा॰—मडल बाँधना—(१) चारों ओर वृत्त की रेखा के रूप में फिरना । चक्कर काटना । जैसे, मंडल बाँधकर नाचना । (२) चारों ओर घेरना । चारों ओर से छा जाना । जैसे, बादलों का मंडल बाँधकर बरसना । (३) अँधेरे का चारों और छा जाना ।
२. गोल फैलाव । वृताकार या अंडाकार विस्तार । गोला । जैसे, भूमंडल ।
३. चंद्रमा वा सूर्य के चारों ओर पड़नेवाला घेरा जो कभी कभी आकाश में बादलों की बहुत हलकी तह या कुहरा रहने पर दिखाई पड़ता है । परिवेश ।
४. किसी वस्तु का वह गोल भाग जो अपनी द्दष्टि के संमुख हो । जैसे, चद्रमडल, सूयमडल, मुखमडल ।
५. चारों दिशाओं का घे । जो गोल दिखाई पड़ता है । क्षितिज ।
६. बारह राज्यों का समूह यौ॰—मंडलेश्वर ।
७. चालिस योजन लंबा और बीस योजन चौड़ा भूमिखंड वा प्रदेश ।
८. समाज । समूह । समुदाय । जैसे, मित्रमडल । उ॰— गोपिन मडल मध्य बिराजत निसि दिन करत बिहार ।—सूर (शब्द॰) ।
९. एक प्रकार का ब्यूह । सेना की वृत्ताकार स्थिति ।
१०. कूकुर । कुत्ता ।
११. एक प्रकार का सर्प ।
१२. एक प्रकार का गंधद्रव्य । व्याघ्रनखा । बघनही ।
१३. एक प्रकार का कुष्ट रोग जिसमें शरीरग में चकत्ते से पड़ जाते हैं । १४ । शरीर की आठ संधियों में एक (सुश्रुत) ।
१५. ग्रह के घूमने की कक्षा ।
१६. खेलने का गेंद ।
१७. कोई गोल दाग वा चिह्न ।
१८. ऋग्वेद का एक खंड ।
१९. चक्र । चाक । पहिया ।
२०. राजा के प्रधान कर्मचारियों का समूह । वि॰ दे॰ 'अष्टप्रकृति' ।