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मंथ

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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मंथ संज्ञा पुं॰ [सं॰ मन्थ]

१. मथना । बिलोना । यौ॰—मंथगिरि =दे॰ 'मंथपर्वत' । मंथगुण = मथनी की रस्सी । मंथदंड, मंथदंडक = मथानी का डंडा जिसमें रस्सी लगाकर मथते हैं । मंथविष्कंभ = वह खंभा या डंडा जिसमें मथानी की रस्सी बाँधी जाती है । मंथशैल =दे॰ 'मथपर्वत' ।

२. हिलाना । क्षुब्ध करना ।

३. मर्दन । मलना ।

४. मारना । ध्वस्त करना ।

४. कंपन ।

६. एक प्रकार की पीने की वस्तु जो कई द्रव्यों को एक साथ मथकर बनाते हैं ।

७. दूध वा जल में मिलाकर मथा हुआ सत्तू ।

८. मथानी । वह औजा र जिससे कोई पदार्थ मथा जाता है ।

९. मृग की एक जाति का नाम ।

१०. सूर्य (को॰)

११. सूर्यरश्मि । सूर्य की किरण ।

१२. घर्षण से अग्नि उत्पन्न करने का यंत्र । मंथा (को॰) ।

१३. आँख का एक रोग जिसमें आँखों से पानी या कीचड़ बहता है ।

१४. एक प्रकार का ज्वर जो बालरोग के अंतर्गत माना जाता है । मथर । विशेष—वैद्यक के अनुसार यह रोग ज्वर में घी खाने और पसीना रोकने से होता है । इसमें रोगी को दाह, भ्रम, मोह और मतली होती है, प्यास अधिक लगती है, नींद नहीं आती, मुँह लाल हो जाता है और गले के नीचे छोटे छोटे दाने निकल आते हैं । कभी कभी अतीसार भी होता है ।