मंदा
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]मंदा संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ मन्दा]
१. सूर्य की वह संक्रांति जो उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद ओर रोहिणी नक्षत् र में पड़े । ऐसी संक्रांति में संक्रमणानंतर तीन दंड तक पुण्य- काल होता है ।
२. वल्लीक रंज । लताकरंज ।
मंदा ^२ वि॰ [सं॰ मन्द] [स्त्री॰ मन्दी]
१. धीमा । मंद । क्रि॰ प्र॰—करना ।—पड़ना ।—होना ।
२. ढीला । शिथिल ।
३. सामान्य मूल्य से कम मूल्य पर बिकनेवाला । जो महँगा न हो । जिसका दाम थोड़ा हो । सस्ता । उ॰—मधुकर ह्याँ नाहिन मन मेरो...... । को सीखै ता बिनु सुनुसूरज योगज काहे केरो । मंदो परेउ सिधाउ अनत लै यहि निर्गुण मत मेरो ।—सूर (शब्द॰) ।
४. खराब । निकृष्ट । उ॰—योग वियोग भोग भल मंदा । हित अनहित मध्यम भ्रमफंदा ।—तुलसी (शब्द॰) ।
५. बिगड़ा हुआ । नष्ट । भ्रष्ठ ।