मक्खी
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]मक्खी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ मक्षिका, प्रा॰ मक्खिआ]
१. एक प्रसिद्ध छोटा कीड़ा जो प्रायः सारे संसार में पाया जाता है और जो साधारणतः घरों और मैदानों में सब जगह उड़ता फिरता है । मक्षिका । माखी । विशेष—मक्खी के छह पैर और दो पर होते हैं । प्रायः यह कूड़े कतवार और सड़े गले पदार्थों पर बैठती है, उन्हीं को खाती और उन्हीं पर बहुत से अंडे देती है । इन अंडों में से बहुधा एक ही दिन में एक प्रकार का ढोला निकलता है, जो बिना सिर पैर का होता है । यह ढोला प्रायः दो सप्ताह में पूरा बढ़ जाता है और तब किसी सूखे स्थान में पहुँचकर अपना रूप परिवर्तित करने लगता है । १०-१२ दिन में वह साधारण मक्खी का रूप धारण कर लेता है और इधर उधर उड़ने लगता है । मक्खी के पैरों में से एक प्रकार का तरल और लसदार पदार्थ निकलता है, जिसके कारण वह चिकनी से चिकानी चीज पर पेट ऊपर और पीठ नीचे करके भी चल सकती है । यौ॰—मक्खीचूस । मक्खीमार । मुहा॰—जीती मक्खी निगलना=(१) जान बूझकर कोई ऐसा अनुचित कृत्य या पाप करना जिसके कारण पीछे हानि हो । (२) अनौचित्य या दोष की ओर ध्यान न देना । दोष या पाप की उपेक्षा करके वह दोष या पाप कर डालना । नाक पर मक्खी न बैठने देना=किसी को अपने ऊपर एहसान करने का तनिक भी अवसर न देना । अभिमान के कारण किसी के सामने न दबना । मक्खी की तरह निकाल या फेंक देना=किसी को किसी काम से बिलकुल अलग कर देना । किसी को किसी काम से कोई संबंध न रखने देना । मक्खी छोड़ना और हाथी निगलना=छोटे छोटे पापों या अपराधों से बचना और बड़े बड़े पाप या अपराध करना । मक्खी मारना या उड़ाना=बिलकुल निकम्मा रहना । कुछ भी काम धंधा न करना ।
२. मधुमक्खी । मुमाखी ।
३. बंदूक के अगले भाग में वह उभरा हुआ अश जिसकी सहायता से निशाना साधा जाता है ।